Thursday 10 March 2011

प्रकृति की गोद से......

   

                   अनमोल उपहार..

धरती पर ईश्वर का वरदान,
प्रकृति है धरती की शान..
प्रकृति है ईश्वर की देन,
जिस पर इठलाता स्वयं भगवान्!

छवि है इसकी कितनी निराली,
सुन्दरता से ये भरपूर..
रूप इसका इतना निराला,
हर नज़र को मोहने वाला!

नदी-झरनों की चंचल लहरें,
कल-कल, कल-कल करती शोर..
पंछी गाते गीत सुरीले,
रवि-किरणों में जब होती भोर!

प्रकृति की रक्षा कर,
रखना है हमें उसका मान..
दिया मानवजाति को जिसने,
प्रकृति की गोद का दान!

पाकर प्रकृति रुपी अनमोल उपहार,
भारत देश बना महान..
आओ मिलकर प्रण करें हम,
बनाए रखेंगे प्रकृति की शान..!!

©....kavs"हिन्दुस्तानी"..!!





6 comments:

  1. कविता जी सबसे पहले तो "बधाई" नवसृजित ब्लॉग के लिए
    "एक उड़ान अंतर्मन की " इन पंक्तियों की सरलता ही इनकी कुशलता की परिचायक हैं
    मन उस चातक की मानिंद हैं जो उड़ता जाता हैं दूर नील गगन के छोर से क्षितिज तक पर उसकी आँखों मैं स्वाति नक्षत्र का इंतजार बहुत लम्बा होता जाता हैं बहुत लम्बा
    तब रचता हैं वह गीत ,प्रेम,वियोग,विषाद और क्रांति के.... शायद उसकी प्यास ही उसका संबल बन जाती हैं
    ऐसा ही संबल आपकी लेखनी को भी और उर्जावान ,निश्चल और निश्छल बनाए रक्खे
    पुनः बहुत बधाई

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  2. "पर्यावरण प्रदूषण से अवनि(पृथ्वी )बचाए"
    सबको देती प्रकृति प्यारी छावं - ठाँव है |
    खुदा अपना जहां के ईश्वर महा -महान है ||
    कौतूहल कोना-कोना गोशा-गोशा मति मारे |
    सुरक्षा को कवच सम्हारे प्यारे गण सारे ||
    निज-निज में डींग हांकने वाले सारे द्वारे |
    दिखे ओजोन परत बचाने वाले सभी किनारे ||
    शोषक पराबैगनी विकीरण किरण सुकवच ओजोन तारे |
    हिफाजत मानव की करता कैंसर त्वचा आँख की बीमारीसे ||
    पर्यावरण संकट गहराया आर्थिक विकाश हम सब जानें |
    उपभोग -अभिमुख पौद्योगिकी में प्रगति जनता भी माने ||
    रासायनिक प्रयोग से ओजोन परत को हानि होता जा रहा |
    भौगोलिक सूचना तन्त्र कम्पूटरीकृत करते होता जा रहा ||
    जलवायु परिवर्तन जल-प्रदूषण निजाम विविधता बता रहा |
    खाद्य की निश्चिंतता आजीविका का खतरा बने ना दिख रहा ||
    पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा जगत जानता मुहीम बचाने की ठानें |
    करना है कल्याण विश्व का जनला 'मंगल 'कोलाहल हौ काहें||
    शब्दार्थ: -कोना -कोना -चप्पा -चप्पा |गोशा -गोशा -जहाँ आवाज न पहुच पाती हो वहाँ भी पहुचती है |अवनि -पृथ्वी ,जमीन ,धरती | शोषक-क्षीण करने वाला ,सोखने वाला |

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  3. हरीश भट्ट जी बहुत बहुत शुक्रिया। यूँ ही मार्गदर्शन करते रहिए :)

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  4. बहुत ही प्रेरक रचना सुखमंगल जी। आपकी इस रचना से प्रेरित होकर सभी अपने अपने दायित्व का निर्वहन करे तो हमारी अवनि जल्द ही इस संकट से उबर जायेगी। _/\_

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  5. आरती उतार लो, आ गया बसन्त है!
    ज़िन्दग़ी सँवार लो, आ गया बसन्त है!
    खेत लहलहा उठे,खिल उठी वसुन्धरा,
    चित्रकार ने नया, आज रंग है भरा,
    पीत वस्त्र धार लो, आ गया बसन्त है!
    ज़िन्दग़ी सँवार लो, आ गया बसन्त है!

    माँ सरस्वती से आज,बिम्ब नये माँगलो,
    वन्दना के साथ में, भाव नये माँग लो,
    शारदे के द्वार से, ज्ञान का प्रसाद लो,
    दूर हों विकार सब,शब्द का प्रसाद लो||

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  6. हार्दिक शुक्रिया KAVS"HINDUSTANI जी टिप्पड़ियों से रचनाकारो का मनोबल बढ़ता है | बहुत बहुत बधाई !

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