"खो गया जाने कहाँ, जीवन से हर्ष और उल्लास..
थकन भरी है ज़िन्दगी, गम है सबके पास.."
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ये लाइन पढ़ी थी कहीं, अच्छी लगी। इन पंक्तियों ने ही इस रचना को रचने के लिए प्रेरित किया।
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खो गया जाने कहाँ, जीवन से हर्ष और उल्लास
थकन भरी है ज़िन्दगी, गम है सबके पास।
बेहताशा भागदौड़, सुख-साधन जुटाने को
तरस गया इंसान, खुद से ही मिल पाने को।
छूटा अपनों का साथ, मन में रह गयी मन की बात
बोझिल हो रहा तन-मन, बीतते जाते दिन और रात।
ठहर मुसाफिर सोच जरा, क्या पा रहा क्या खो रहा
खुशियां लेने निकला था, पर खून के आंसू रो रहा।
पड़ा जो पर्दा आँख पर, उतार दे कर दरकिनार
खोल दे बाहों के पाश, जीवन को तू कर स्वीकार।
सुन सुर हवाओं के, जीवन के नए साज़ पर
लिख ले गीत नये, अपने दिल की आवाज़ पर।
जो बिखर गये समेट उन्हें, बुन सपनों का ताना-बाना,
जीवन में हो हर्ष उल्लास, तो हर पल लागे गीत सुहाना।
©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!