Friday 12 April 2013


कहने से पहले
एक दफा तो
सोचा होता ..
जो टूटा वो
तेरा विश्वास
नहीं...
तेरी खुशियों का
तलबगार कोई था....!

जिसकी धुनों
से बंधकर
सरगम बननी
थी जिन्दगी
उस से
कोई पर्दा
ना राज़ कोई था....!

खुशियाँ भर के
नाव मंझदार में
डूबा दी गयी
उसकी
बीच भंवर में
फंसकर
बचा ले उसे
ऐसा ना कारसाज़ कोई था....!

बड़ी बेपरवाह
सी - थी
कोशिश मेरी
जिसका कोई रूप
ना आकार कोई था
क्यूंकि मंझदार में
डोल रही नैया में
अपना ही सवार कोई था....!

रास्ता जो
उसने दिखाया
शिद्दते-फ़र्ज़
मैंने निभाया
कैसी थी
वो हिम्मत
कहाँ से आया
हौंसला?
या फिर चमत्कार कोई था....!

बे-आबरू कर
कूचे से
निकाल दिया उसने
कहकर कि-
तुझे मेरी
ज़िन्दगी में
शिरकत का
ना अधिकार कोई था....!

कैसे भुला दिया तूने
तेरा आईना हूँ मै
जब तू टूटा
तो मैं
बे-आवाज़ नहीं था
खुद से ज्यादा भरोसा
किया तुझ पर
आ जाए कभी याद
तो मुस्कुरा देना
सोच कर
ऐसा एक शख़्स
कभी पास कोई था....!!!!

  ©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!