जद्दोजहद
जद्दोजहद..
कल्पना
और
सच्चाई
के बीच
की खाई को
पाटने की ...
एक अन्तर्द्वन्द्व ..
एक कशमकश …
उबल रहा था
मस्तिष्क की
भट्टी में
मन का अबोलापन ....
जो जानता था ..
कि नहीं
रह सकती
एक म्यान में
दो तलवारें
साथ-साथ .......
मिटना
ही होगा
एक रूप को
और एक
पा जायेगा
अपना अस्तित्व ....
अंततः
हारना पड़ा
कल्पना को
सच्चाई के
धरातल पर…
क्योंकि ...
हर व्यंजना
सच नही होती
और सच्चाई
अक्सर थोड़ी
कडवी होती है…
और
कुछ व्यंजनाओ को
सच होने के लिए
लेना पड़ता है
पुनर्जन्म ....
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