Tuesday 2 October 2018


ज़िन्दगी क्या है??

ज़िन्दगी वो है जिसे करके तुम्हें ख़ुशी मिले, सच्ची ख़ुशी। वो ख़ुशी किसी भी चीज़ में छुपी हो सकती है। अब ये ढूँढना तुम्हारा काम है क्योंकि महसूसना तुम्हें है कि क्या चीज़ तुम्हे ख़ुशी देती है।

जैसे किसी को टिमटिमाती लाइट्स, जगमगाहट पसन्द है, तो किसी को प्रकृति; किसी को बागबानी तो किसी को घूमना; किसी को दोस्तों संग मिलना- जुलना, तो किसी को शांत रहकर खुद के साथ वक़्त बिताना; कोई किताबों को देखकर भागता है तो किसी को किताबें खुद पास बुलाती है; कोई ऊन के फंदों में ज़िन्दगी ढूंढ लेता है, तो कोई शब्दों को बुन लेता है जी।

ज़िन्दगी तो आपके आसपास ही बिखरी पड़ी है, ढूंढेंगे तो मिल जाएंगी। बस जरूरत है उस तक अपनी पहुँच बनाकर उसे धप्पा करने की..  ;) 😊 💕 🎶🎵

Sunday 30 September 2018



कभी कभी कुछ कर्म ..
चाहते नहीं करना हम ...
क्योंकि कौन चाहता है ..
खोना अपनों को ....

फिर भी करने पड़ते हैं ..
भिन्न भिन्न दृष्टिकोण ..
भिन्न भिन्न आयाम…
भिन्न भिन्न प्रकार से ..
भिन्न भिन्न सोच लिये….

कोई करता ..
आत्मिक संतुष्टि हेतु ..
तो कोई ..
दुखो को दूर करने को…
कोई करता ...
यश,कीर्ति,वृद्धि की चाह में ..
तो कोई ..
धर्म-आडम्बरो की राह में ..

पर कैसे मान लेते हैं हम ..
की जो हमारे पितर है ...
वो नाराज़ हो जायेंगे ...
मात्र पितर कर्म न किये जाने से ...???
या अमावस्या हो जाती है और काली ???

जब से जन्म लिया तब से
देखते आयें हैं हमेशा ही
माता -पिता तो सर्वस्व
लुटा देना चाहते हैं ..
अपने नन्हो के लिए
अपने बच्चों के लिए ..
तो कैसे सोच लेते हैं हम ..
कि पूर्वज अपनों का
कर सकते हैं अहित कभी ..?

किया जाता है मेरे द्वारा भी
पितर कर्म ....
जो एक ब्रह्म-आडम्बर न होकर
तर्पण है  मेरे भावो का ...
अर्पण है मेरे मन का  ..
जो चलना चाहता था ..
उनकी ऊँगली थाम के ..
जीवन की उहापोह के
विभिन्न रंगों को साथ लेकर ..
बांटना चाहता था अपना सब ..
जो रह गया शेष ...
नियति की क्रूरता के आगे
विवश होकर ...

मन  पाना  चाहता था ..
आशीष के कुछ अंश ..
अपने हिस्से के ..
जो मिलने से पहले ही
छिन गये मुझसे ...
वो ख़ुशी के पल ..
जो मेरे घर आने से पहले ही
मुड गये जाने किस राह पर ..

सुना है दादा, दादी ..
बहुत प्यार करते हैं ..
अपने मूल से अधिक
अपने ब्याज से ..
कितने प्यारे से रिश्ते  ..
जिन्हें कभी जुबान पर
आने का मौका ही नही मिला ..
माँ को बेटी द्वारा
दिया जाने वाला
साड़ी का उपहार ..
जिसमे सिमट जाते हैं
जिंदगी के कुछ पल
ठहर से जाते है
वक़्त को रोकते हुए से ....
भाई की कलाई ...
जो पल पल याद आये ..
अब नही है पर 
दिल समझ न पाए ...

पितर कर्म मेरे लिए है ..
अपनों के होने का अहसास
जिंदगी भागदौड़ से दूर
कुछ निवाले फिर से अपनों के साथ ..
ब्राह्मण को क्यों मै ढूढ़ने जाऊं ..
जब घर का सबसे छोटा बच्चा हो खास
जो सबसे न्यारा होता ..
सबकी आँखों का तारा होता ..
उससे मासूम भला क्या होगा ..
वही तो पितरो की दुआ में होगा ..

पितर कर्म कुछ ख़ास होता है….
मन बीत चुके लम्हों के पास होता है ...
जो जीवन शेष रहने तक
जुड़े रहेंगे हमसे ...
उन अपनों के होने का अहसास होता है ....

©....kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

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किसी की भावनाओ को आहात करने का कोई उद्देश्य नही .. अपितु अपने विचारो की प्रस्तुति मात्र है…

Wednesday 26 September 2018




लौटना.. 
हां लौटना ही तो है 
एक दिन..

छूट जायेगा हर मोड़
टूट जाएगा हर जोड़
क्योंकि मुझे लौट जाना है
एक दिन...
ना कभी रही किसी से होड़...
हां अब याद रखती हूं..
मुझे लौट जाना है
एक दिन..

प्रीत की पाती ना बन सकी
प्यार की जाती ना बन सकी
क्योंकि मुझे लौट जाना है
एक दिन...
किसी की साथी ना बन सकी..
हां अब याद रखती हूं..
मुझे लौट जाना है
एक दिन..

ज़िन्दगी एक मेला है
और राही अकेला है
क्योंकि मुझे लौट जाना है
एक दिन
ना बाँधा सामान सब झमेला है
हां अब याद रखती हूं..
मुझे लौट जाना है
एक दिन..

प्रकृति ही मूल है
बाकि सब शूल है
क्योंकि मुझे लौट जाना है
एक दिन
याद रखे दुनिया ये तेरी भूल है
हां अब याद रखती हूं..
मुझे लौट जाना है
एक दिन..

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Tuesday 18 September 2018

गर हो अब तलक यकीन वफ़ा पर,
आ तुझको थाम लूँ मैं..
ज़िन्दगी के तूफाँ ज़ोरों पर है,
और बड़ी दूर जाना है..

©....Kavs"हिन्दुस्तानी..!!

Monday 10 September 2018



तेरी आँख का आँसू हूँ ...
चाहे तो अपना लो चाहे तो गिरा दो…. !

जो आँखों में रहूँगा ..
दिल की हर नमी सहूंगा ...!
जो ढलक गया अंखियों से…
तेरे दर्द की कहानी कहूँगा ...!!

तेरी आँख का आँसू हूँ ...
चाहे तो अपना लो चाहे तो गिरा दो…. !

आशियाँ में रहा तो चमकता रहूँगा ...
कभी ख़ुशी कभी गम में झलकता रहूँगा ...
कराहटो में तेरी फफकता रहूँगा
बेचैनी में सुकून देने को ढलकता रहूँगा ...

तेरी आँख का आँसू हूँ ...
चाहे तो अपना लो चाहे तो गिरा दो…. !

दुनिया की इस चकाचोंध से
पलकों के पीछे सिहरता रहूँगा ..
दिखाने को रंगीन दुनिया की झलक
सतरंगी बन आँखों में बिखरता रहूँगा ....

तेरी आँख का आँसू हूँ ...
चाहे तो अपना लो चाहे तो गिरा दो…. !

©.... Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Tuesday 4 September 2018



कडवे तो फल भी निकलते है
रिश्तों में मिठास होनी चाहिए..

नरम तो स्वाभाव भी होता है
भावों में दृढ़ विश्वास होना चाहिए...

बहते तो आंसू भी है
विश्वास में जमाव होना चाहिए....

बोलना तो सबको आता है
विचारों में गहराव होना चाहिए...

बदलते तो मौसम भी हैं
मन में ठहराव होना चाहिए...

डगमगाता तो होंसला भी है
क़दमों में थमाव होना चाहिए...

डर तो प्रवृति है रोकने की
संघर्ष में आत्मविश्वास का बढ़ाव होना चाहिए...

निर्भरता में भी कट जाती है जिंदगी
स्वाभिमान में आत्मनिर्भरता का गुणाव होना चाहिए...

बनावट तो शब्दों में भी होती है
आँखों में निश्चित आकार होना चाहिए...

शौहरत तो पैसे से भी मिल जाती है आदमी को
इंसान की पहचान उसका व्यवहार होना चाहिए...

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Monday 3 September 2018

                           

अँखियाँ भीगी नीर बहे.. 
दोनों जमुना तीर बहे..
धीर अधीर गंभीर बहे..
देखो मन की पीर बहे..

नैन लगा के दिल हारे..
प्रीत पे अपनी जहां वारे..
खोई सुधबुद्ध हुए बावरे..
राधा संग कृष्ण सांवरे..

जिस्म दो एक जान हुए..
एक दूजे के प्राण हुए..
बिछोह में भी जुड़े हुए..
देखो प्रीत का प्रमाण हुए..

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!



मुरली की धुन पर
जग नचा डाला है..
मनमोहना
मेरा बंसीवाला है..

यशोदा का नैंनतारा
ब्रिज का उजाला है ..
मनमोहना
मेरा बंसीवाला है ..

राधा की सुधबुध
गोपियों का ग्वाला है ..
मनमोहना
मेरा बंसीवाला है ..

साँझ की बेला
दिन का उजियाला है ..
मनमोहना
मेरा बंसीवाला है ..

सुख की कुंजी
दुख हरने वाला है ..
मनमोहना
मेरा बंसीवाला है ..

मेरी चितवन
मेरा रखवाला है ..
मनमोहना
मेरा बंसीवाला है ..

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!
....................


                "जय श्री कृष्णा"
आपको सपरिवार श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
भगवान श्रीकृष्ण आपको और आपके पूरे परिवार को सदैव सुख, समृद्ध एवं सम्पन्न करते हुए आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।

              " जय श्री कृष्णा"
                   "राधे राधे"

हैप्पी कृष्णा जन्माष्टमी .. 🎂💐🙏😇🙏

Saturday 1 September 2018



हम सब इस रंगमंच की कठपुतलियां हैं.. जिसकी डोर.. ऊपरवाले के हाथ में है..

तो जब सब पहले से तय है.. तो चिंता किस बात की.. बस जियो जी भर के.. ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा है.. जब कुछ साथ जाना नहीं तो इतनी हाय-हाय काहे..?

कल की क्यों हो तुझको फ़िक्र.. जी लो जैसे मस्त कलंदर ... 😇💃

 परेशानियां तो आनी-जानी हैं.. "मुस्कान" तो आपके खुशमिज़ाज और ज़िंदादिली की निशानी है.. चेहरे पर बैठी राजरानी है.. तो इन परेशानियों से घबराकर अपनी राजरानी को क्यों आहत करना जी.. आपने अगर उसे मना लिया तो सब आपका.. क्योंकि तब आप दिल से जियेंगे, दिमाग से नहीं 😇👍

एक पल का जीना, फिर तो है जाना..
तौबा क्या लेकेे जाइये, दिल ये बताना..
खाली हाथ आये थे हम,खाली हाथ जाएंगे..
बस प्यार के दो मीठे, बोल गुनगुनायेंगे..
तो हँस ले दुनिया को है हँसाना.. 😊😊🎶🎼🎵

खुद जियें सबको जीना सिखाएं.. अपनी खुशियां चलो बाँट आएं.. 😊😊💃😇
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Monday 27 August 2018



ना शोर ही मचाए, ना ख़ामोश है ज़िन्दगी,
जागती आँखें लिए मदहोश है ज़िन्दगी..

ना खुल के खिलेे, ना उजाट है ज़िन्दगी,
आती-जाती लहरों का चुप्पा घाट है ज़िन्दगी..

ना चाल ही सूझती, ना मात है ज़िन्दगी,
शतरंज की ऐसी एक बिसात है ज़िन्दगी..

ना रईसी की ज़मात, ना फ़ाका है ज़िन्दगी,
दोनों के बीच झूलता एक ख़ाका है ज़िन्दगी..

ना सुकून का जामा, ना क़फ़न है ज़िन्दगी,
किस दौर से गुजर रही कहाँ दफ़न है ज़िन्दगी..

ना कोई हुक्मरां, ना ही हुक़ूमत है ज़िन्दगी,
जाने कहाँ ज़मींदोज़ कहाँ ज़ब्त है ज़िन्दगी..

ना मुहब्बत ही है, ना हिक़ारत है ज़िन्दगी,
जाने किस सोहबत की शरारत है ज़िन्दगी..!!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Thursday 23 August 2018



               कामिनी जी ने घर के काम  के लिए कामवाली को रखा। उसके आते ही उन्होने उसे कुछ निर्देश दिए, जैसे -
  'अपनी चप्पल बाहर उतार कर आना, घर के किसी सामान को उनसे पूछे बिना न छूना, प्यास लगे तो अपने हाथ से लेकर ना पिये उनसे मांग ले और पीने के पानी या फिल्टर को तो बिल्कुल न छुये।'

       शांति ने शांति से सुना। बोली मैडम जी आप निश्चिंत रहिये। मैं अपनी चप्पल बाहर उतारूंगी, आप से पूछे बगैर किसी चीज को हाथ नहीं लगाऊंगी और प्यास लगने पर आपसे पानी भी नहीं मांगूंगी। मैं अपने साथ पानी की बड़ी बोतल और अपना टिफिन  लेकर आती हूँ। आपने शायद देखा नहीं वो थैली मैंने बाहर रखी है।

   कामिनी जी ने कहा ठीक है, कभी पानी खत्म हो तो खुद मत लेना। प्रति उत्तर जो मिला कामिनी जी के लिए कल्पनातीत था।

  शांति ने कहा, मैडम जी मैंने कहा ना, मैं आपके घर का पानी नहीं पिऊंगी। जवाब थोड़ा खटका, कामिनी बोली- क्या मतलब है तुम्हारा?

 शांति का जवाब कामिनी के लिए किसी तमाचे से कम ना था।

  मैेडम जी, मेरे पिताजी ने एक बार गांव के कुंए  से बिना पूछे पानी निकाल कर पी लिया था। तब उन्हें बहुत मार पड़ी थी। दूसरे दिन ही उन्हें परिवार सहित गांव से निकाल दिया गया। उन्होने गांव के बाहर आकर कसम ली और अपने परिवार को भी दी कि कभी उनका छुआ पानी और खाना मत खाना जो हमें अछूत मानते हैं, याद रखना वो हमारे लिये अछूत हैं।

 मैडम जी उस दिन से हमारे परिवार में सब अपने काम पर जाते समय अपना खाना पानी लेकर चलते हैं, जिससे उस घर का पानी न पीना पड़े जो हमें अछूत मानते हैं, वो हमारे लिये अछूत  हैं।
       कामिनी निःशब्द, स्तब्ध खड़ी रही।

                         🙏🙏



Wednesday 22 August 2018



बेहताशा भागदौड़, सुख-साधन जुटाने को
तरस गया इंसान, खुद से ही मिल पाने को।

छूटा अपनों का साथ, मन में रह गयी मन की बात
बोझिल हो रहा तन-मन, बीतते जाते दिन और रात।

ठहर मुसाफिर सोच जरा, क्या पा रहा क्या खो रहा
खुशियां लेने निकला था, पर खून के आंसू रो रहा।

पड़ा जो पर्दा आँख पर, उतार दे कर दरकिनार
खोल दे बाहों के पाश, जीवन को तू कर स्वीकार।

सुन सुर हवाओं के, जीवन के नए साज़ पर
लिख ले गीत नये, अपने दिल की आवाज़ पर।

जो बिखर गये समेट उन्हें, बुन सपनों का ताना-बाना,
जीवन में हो हर्ष उल्लास, तो हर पल लागे गीत सुहाना..!!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!



Monday 20 August 2018

 

  एक पान वाला था। जब भी पान खाने जाओ, ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता। कई बार उसे कहा कि भाई देर हो जाती है, जल्दी पान लगा दिया करो। परन्तु उसकी बात ख़त्म ही नहीं होती।

  एक दिन अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई, तक़दीर और तदबीर की। मैंने सोचा आज उसकी फ़िलासफ़ी देख ही लेते हैं।

  मेरा सवाल था, आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से उसके जवाब से मेरे दिमाग़ के जाले साफ़ हो गए।

  कहने लगा आपका किसी बैंक में लॉकर तो होगा? उसकी चाबियाँ ही इस सवाल का जवाब हैं। हर लॉकर की दो चाबियाँ होती हैं, एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास।

  अपने पास जो चाबी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य। जब तक दोनों नहीं लगती ताला नहीं खुल सकता।

 हमें अपनी चाभी भी लगाते रहना चाहिये पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाभी लगा दे। कहीं ऐसा न हो कि भगवान अपनी भाग्यवाली चाबी लगा रहा हो, हम परिश्रम वाली चाबी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाये।


Sunday 19 August 2018



नियति

मासूमियत से भरा वो चेहरा
झुनझुने की एक झुनझुनाहट पर
दस दस किलोलें भरता
माँ की गोद में..

कि चलो कोई तो है जो जीवन की 
कंटीली राहों से है बेख़बर
मेरे होठों के बीच की रेखा
जो फैल कर मुस्कान बन गयी थी
कुछ सोच कर फिर अपने
दायरों में सिमट गई..

कि कभी तो इसे भी
उन गर्म हवाओं से
दो-चार होना पड़ेगा
जो जीवन की
कंटीली राहों पर चलते हुए
बार-बार उखाड़ेंगी उसके पाँव..

पर फिर भी
थकने की उसे इजाज़त नहीं
क्योंकि चलना उसका नसीब है
किन्कर्तव्यविमूढ़ थी मैं
जो ये भी नहीं कह सकती थी
कि तू चलना मत सीखना
क्योंकि ये तो नियति है ज़िन्दगी की..!!!!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Saturday 18 August 2018

                   

     एक बार एक शिव भक्त धनिक शिवालय जाता है।पैरों में महँगे और नये जूते होने पर सोचता है कि क्या करूँ?यदि बाहर उतार कर जाता हूँ तो कोई उठा न ले जाये और अंदर पूजा में मन भी नहीं लगेगा; सारा ध्यान् जूतों पर ही रहेगा। उसे बाहर एक भिखारी बैठा दिखाई देता है। वह धनिक भिखारी से कहता है " भाई मेरे जूतों का ध्यान रखोगे? जब तक मैं पूजा करके वापस न आ जाऊँ" भिखारी हाँ कर देता है। अंदर पूजा करते समय धनिक सोचता है कि " हे प्रभु आपने यह कैसा असंतुलित संसार बनाया है? किसी को इतना धन दिया है कि वह पैरों तक में महँगे जूते पहनता है तो किसी को अपना पेट भरने के लिये भीख तक माँगनी पड़ती है! कितना अच्छा हो कि सभी एक समान हो जायें!!" वह धनिक निश्चय करता है कि वह बाहर आकर भिखारी को 100 का एक नोट देगा।

बाहर आकर वह धनिक देखता है कि वहाँ न तो वह भिखारी है और न ही उसके जूते ही। धनिक ठगा सा रह जाता है। वह कुछ देर भिखारी का इंतजार करता है कि शायद भिखारी किसी काम से कहीं चला गया हो। पर वह नहीं आया। धनिक दुखी मन से नंगे पैर घर के लिये चल देता है। रास्ते में फुटपाथ पर देखता है कि एक आदमी जूते चप्पल बेच रहा है। धनिक चप्पल खरीदने के उद्देश्य से वहाँ पहुँचता है, पर क्या देखता है कि उसके जूते भी वहाँ रखे हैं। जब धनिक दबाव डालकर उससे जूतों के बारे में पूछता हो वह आदमी बताता है कि एक भिखारी उन जूतों को 100 रु. में बेच गया है। धनिक वहीं खड़े होकर कुछ सोचता है और मुस्कराते हुये नंगे पैर ही घर के लिये चल देता है। 

उस दिन धनिक को उसके सवालों के जवाब मिल गये थे समाज में कभी एकरूपता नहीं आ सकती, क्योंकि हमारे कर्म कभी भी एक समान नहीं हो सकते और जिस दिन ऐसा हो गया उस दिन समाज-संसार की सारी विषमतायें समाप्त हो जायेंगी। ईश्वर ने हर एक मनुष्य के भाग्य में लिख दिया है कि किसको कब और क्या और कहाँ मिलेगा। पर यह नहीं लिखा होता है कि वह कैसे मिलेगा। यह हमारे कर्म तय करते हैं। जैसे कि भिखारी के लिये उस दिन तय था कि उसे 100 रु. मिलेंगे, पर कैसे मिलेंगे यह उस भिखारी ने तय किया। 

हमारे कर्म ही हमारा भाग्य, यश, अपयश, लाभ, हानि, जय, पराजय, दुःख, शोक, लोक, परलोक तय करते हैं। हम इसके लिये ईश्वर को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं।

 🙏🙏



Wednesday 15 August 2018



अपनी मज़बूती पर 
इठलाता बाँध..
भूकम्प, बारिश, या तूफ़ान 
अडिग रहा धरा पर 
रख पैर अंगद समान..
पर क्षमताओं की भी 
होती हैं अपनी सीमाएं..

प्रकृति प्रदत प्रहार
लगातार बारबार ...
कर रहे खोखले
मज़बूती के बंधन 
कर सुनार की तरह 
धीरे-धीरे महिन वार..

वेग चाहे जैसा भी हो
करता है जब स्पर्श ..
भावना को, क्रोध को, 
आंसुओं को या पानी को..
बहा ले जाता है बहुत कुछ 
अपनी तीव्रता के साथ...

मज़बूती बह निकलती है
उस वेग के तूफ़ान में...
और शेष रह जाते हैं 
कुछ अवशेष ...
स्पष्ट करने को सार्थकता 
अपने अस्तित्व की...!!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Sunday 12 August 2018


सुनो..!
मैंने..
मन की सिलाईयों पर..
उम्मीदों के रंग-बिरंगे 
फॅंदे डाले हैं ..
मैं बुन रही हूँ 
तुम्हारे लिये ..
प्यार का स्वटेर ..

सूरज की चमकती किरणों से
उकेरूँगी उस पर..
भीगा हुआ-सा चाँद ..
और सीलूँगी उसे पलकों में
अहसासों की मिठास डालकर..

तुम उसमें नहीं, वो फबेगा ..
तुम पर...
क्या कहा..! नाप लूँ एक बार..?
नहीं, नाप की कोई दरकार
नहीं है मुझको..!

क्योंकि जिस तरह तुम्हे आज भी 
अपनी पसंद पर नाज़ है..
वैसे ही मुझे भी है,
अपनी निगाहों पर विश्वास..

क्योंकि म़ैं हूं "तुम्हारी अर्धांगिनी"..!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Monday 6 August 2018



जब होता है मन उदास 
और रहना चाहता है शांत ..
जाने क्यों उसी वक़्त 
शुरू होता है कोलाहल 
अंतर्मन में ...

अक्सर मन के कोनों में 
बेहताशा से दौड़ते 
अनगिनत विचार 
इधर से उधर 
और झड़ी सी लग जाती है 
शब्दों की ...

बार-बार, लगातार
टकराते रहते है 
अंतर्मन से
पाने को एक 
निश्चित सा आकार… 

शब्दों की उठापटक
मन की उहापोह 
अकालांत सी तन्हाई 
क्षणों की छटपटाहट 
भला कैसे दे पाए जन्म 
किसी स्थिरता को… 

मस्तिष्क की भट्टी में 
उफनते विचार और शब्द 
भावों की गर्मी पाकर 
स्वतः पिघलने लगते हैं
होने को आज़ाद 
आँखों के कोरों से बहकर 
धीरे धीरे ... !!

©....Kavs "हिन्दुुस्तानी"..!!

Tuesday 31 July 2018


सुनो..

जो बैठे हो 
चाक पर
तो गढ़ लेना.. 
कुछ सपने,
कुछ उम्मीदें, 
कुछ अरमान,
कुछ अपने..

समय के साथ
आपसी खिंचाव ने
बिखेर से दिए
जो रिश्ते,
उन्हें दुबारा से
मिट्टी में समेट
पुनः करना
नव निर्माण..

सुना है..
कच्ची मिट्टी
जैसे ढालो
ढल जाती है
हर आकार में..
तुम भी उसे
ढाल देना
हर मौसम 
और 
हर व्यवहार के 
अनुरूप..

रंग देना उन्हें 
चटख रंगों से,
जो छूटे ना
बदलती 
परिस्थितियों में,
मन या रिश्तों
में आयी कड़वाहट 
के साथ...!!!

....© Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!


Monday 23 July 2018

गम-ए- फ़ौज़ थी
ख़ुशी एक मौज़ थी।
वफादार ज़िन्दगी में..

आवाज़ तराना था
ख़ामोशी अफ़साना था
लगातार ज़िन्दगी में।

कुछ पा लिए
कुछ खो दिए
अहसास ज़िन्दगी के।

कुछ अपना लिए
कुछ छोड़ दिए
विश्वास ज़िन्दगी के।

कुछ समेट लिया
कुछ बाँट दिया
प्यार ज़िन्दगी में।

कुछ सुख थे
कुछ दुःख थे
सदाबहार ज़िन्दगी में।

कुछ संवर गयीं
कुछ बिखर गयीं
याद ज़िन्दगी की।

हर्फ़ हर्फ़ दर्प दर्प
खोखली होती रही
किताब ज़िन्दगी की।

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Friday 20 July 2018

संस्कार उगा नहीं करते,
खेत-खलिहानों में ..
न ही निर्मित किये जाते
धुआं उगलती फैक्ट्रियो में ..

वो तो उत्पन होते हैं,
विरासतों की ज़मीन पर ..
सुघड़ व्यवहार की धूप में,
पकते, फूलते और फलते हैं…

सींचे जाते है अन्तरात्माओं से
अच्छाई -बुराई की कसौटी पर ..
घिसे और परखे जाते हैं
पारस सा निखार पाते हैं …

धोखेबाजी की मरूभूमि से दूर
सुकोमल मन में आकार पाते है….
मिटटी, माँ, गुरु के आशीष में,
उपहार स्वरुप मिल जाते हैं .. !!

सुविचारों की पौध है संभल कर रोपना,
संस्कृति यही अगली पीढ़ी को सौंपना ..
दुर्व्यवहार, बेईमानी की घुटन से इसे बचाना ,
नव निर्मित निश्छल मनों तक है पहुँचाना ..!!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Saturday 14 July 2018

ज़िन्दगी तू तो मेरी थी ही नहीं कभी ...
दूसरों में खुद को ढूँढना सिखाया मुझको ....!

तुझसे तो गिला भी क्या करना ...
दूसरों की ख़ुशी और उल्हानों में पाया खुद को…!

ज़िन्दगी है हादसों का शहर  ...
सुकून तो मौत ने दिखाया मुझको...!

सीने से लगा के ले तो गयी कम से कम ..
तूने तो कभी अपनाया ही नहीं मुझको ....!

शुक्राना तेरा इस मेहरबानी के लिए ..
औरों के लिए जीना सिखाया मुझको .... !!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Tuesday 10 July 2018



प्यार तो बस प्यार होता है
ना कम ना ज्यादा होता है...
ना पूरा ना आधा होता है
प्यार तो बस प्यार होता है...!

ना रसम ना रिवायत होता है
ना शिकवा ना शिकायत होता है..
अपनेपन की कवायद होता है
खुदा की दी हुई नियामत होता है...

ना स्वार्थ ना उलहाना होता है
प्यारा सा ताना-बाना होता है...
हर दिल को गुनगुनाना होता है
रंगों से सराबोर तराना होता है...

ना बंधन ना जकडन होता है
खुले दिल की धड़कन होता है...
एकदूजे की ख़ुशी की तड़पन होता है
दिल से दिल तक समर्पण होता है...

रिश्तों का आधार होता है
खुशियों का पारावार होता है..
अक्षर बेशक ये अधूरा होता है
पर अपने आप में पूरा होता है...

प्यार तो बस प्यार होता है..
ना कम ना ज्यादा होता है
ना पूरा ना आधा होता है
प्यार तो बस प्यार होता है...!!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Saturday 30 June 2018


तकदीर रूठने से पहले चले आना..
ढलती ज़िन्दगी की कहीं शाम हो ना जाए.....!

रूठ कर जो सोचे वो हम से जुदा हो गये....
दिखता तो वो भी नहीं तू भी कहीं खुदा हो ना जाए..!

निकले थे खुद को उजाड़ चमन तेरा सजाने....
सोचा ही नहीं कि रास्ते ये कहीं दीवार हो ना जाए..!

उम्मीद का दीया जलता रहेगा साँसों की रवानगी तलक..
इंतज़ार में उन्निंदी पलकें कहीं थक के सो ना जाए ..!!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Wednesday 27 June 2018


मंज़ूर नहीं 
मुझे 
भीड़ का 
हिस्सा बनना..

धड़कते दिल की
ख़ामोश
आवाज़ हूँ..

सुख-दुख की 
धुन पर
बिखरता- संवरता..
ज़िन्दगी का 
एक 
बेतरतीब साज़ हूँ..!!

वक़्त की
उथल-पुथल
दबाए
सीने में..

गुमनाम-सा
परिंदा
एक..
खुले आसमां में
उड़ता 
बेपरवाज़ हूँ..!!

©....Kavs"हिन्दुुस्तानी"..!!

Tuesday 12 June 2018


इंसानियत से बड़ा धर्म नहीं, इंसां से बड़ी ना जात..
पञ्च तत्व का शरीर ये, और माटी-सी औकात..!!

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दूसरों की ख़ुशी में खुश होकर देखिए,
यक़ीनन अपने गम भूल जाएंगे..
गम तो सबके खाते में बहुत हैं,
ख़ुशी देकर देखिए रोते हुए बन्दे भी मुस्कुराएंगे..!!
                       
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वक़्त की आँखों से चश्मा उतार रख दिया मैंने..
अपनेपन के आईने में हर कोई धुंधला जाता था..!!
                         
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मेहरबानियां उदासियों की बादस्तूर जारी हैं..
आज इसकी तो कल उस गम की बारी है..!!

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ज़रूरतों की गिनति में ही रहे उम्रभर..
बाकि तो किसी गिनती में हम थे ही नहीं..!!

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देखने भर से ग़र निभते रिश्ते
शायद हम सब बुत होते ..
मोहसिन तेरी इस नगरी में
ना मोहब्बत होती, ना युद्ध होते ..!!©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Tuesday 22 May 2018



हर कोई है
अभिमन्यु
यहाँ
और
भेदना है
अपने-अपने
हिस्से के
चक्रव्यूह को...

निरंतर
गति पाती
बाधाओं से
बचते हुए
निकलना है
तोड़कर
हर व्यूह रचना..

तलाशने होंगे
नये आयाम
जीवन में स्थिरता
बनाये रखने को
नीरस, उबाऊ
और निराशा
से भरे रास्तों
से बचते हुए..

मौका कहाँ
देती है ज़िन्दगी
गिरने, उठने
संभलने भर का
दिखानी पड़ेगी
फुर्ती सी रफ़्तार
करने को हर
बाधा पार
रख क्षमता अपार..

होगा लड़ना
कभी अपनों से
कभी सपनों से
परिस्थितियों से
परेशानियों से
बाधाओं से
जीवन की इस
उथल-पुथल में
प्रतिपल होंगी
परिस्थितियां
प्रतिकूल
करने को
उन्हें अनुकुल
अपने अनुरूप
देनी होगी
अदम्य साहस की
परिभाषा..

संताप, विलाप
पश्चाताप का भी
वक़्त कहाँ..
और जो रुके
थमे ठहरे
इन सब के लिए
तो ठहर जायेगा
जीवन, घुटन
और सड़न
अगर बह गए
इस बहाव में
तो बह जायेगा
सब कुछ..

अभिमन्यु
की तो
वीरगति थी
तुम्हारी
वो भी नहीं
गिनी जायेगी..
इसलिए
जीवन के
रणक्षेत्र में
जुझारू
ही रहना होगा
पूरी तत्परता के
साथ हर क्षण
हर दम
हर सांस
नयी आस
जगानी होगी..

मृत्यु का वरण
कभी उपाय
नही हो सकता
झंझावतों से
बचने का
अपितु
उत्पन्न ही
करेगा
क्लिष्टताओं को
मरने के बाद भी
दागे जायेंगे
तमाम प्रश्न
इस हश्र
की कौतुलहता
को जानने
की जिज्ञासा में..

क्यों देते हो
अधिकार
उन लोगों को
जो कभी तुम्हारे
संघर्ष के
साथी भी नही थे
वे भी उंगलियां
उठाये नज़र आएंगे
कतार में
बिन ज़ज़्बातों
के इस
बाज़ार में..

जीवन
तो एक
सतत संघर्ष
का नाम है
जीने से
मरने तक
एक निरंतरता
लिए हुए
और हमें
बिना थके
करना है युद्ध
जीवन की
बदलती चाल
और
बदलते काल
से
एक क्षण
से मुक्त
हो
दूसरा क्षण
पाने को..

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Friday 11 May 2018


चाहती हूँ
बिखेर देना
खुद को …

इस अहसास
और विश्वास
के साथ ....

कि समेट
लोगे तुम
मुझे…

फ़िर..

गढ़ोगे
अपने अनुरूप
अपने लिए...

सुनो,...!

कुछ इस तरह
देना आकार
मुझको …

कि...

मैं पा जाऊं
एक परिपूर्ण
अस्तित्व..

अपनी ही
सम्पूर्णता
के साथ..!!

©....Kavs"हिन्दुुस्तानी"..!!

Sunday 6 May 2018

कभी कभी मन करता है…
नदिया की धारा  के संग,
बहती पवन-सी  बह जाऊं .....

कभी कभी मन करता है ..
सितारों की चुनर ओढ़  ..
रूपों भरी रात हो जाऊं ...

कभी कभी मन करता है…
भोर की पहली किरण संग
सुनहरे दिन की सौगात हो जाऊं ...

कभी कभी मन करता है
अनखुए सपनों के संग
परिधि से निकल आकाश में खो जाऊं ....

पर इतना आसान कहाँ बह जाना …
रूपों भरी रात या सुनहरा दिन हो जाना
यूँ अपनी परिधि  छोड़ आकाश में खो जाना ...

थम जाना और जम जाना ही
शेष रहता अनवरत प्रक्रिया में
जो पिघलता है वक़्त की गर्मी के साथ धीरे-धीरे  ....

©....kavs "हिंदुस्तानी"..!!