Thursday 23 August 2018



               कामिनी जी ने घर के काम  के लिए कामवाली को रखा। उसके आते ही उन्होने उसे कुछ निर्देश दिए, जैसे -
  'अपनी चप्पल बाहर उतार कर आना, घर के किसी सामान को उनसे पूछे बिना न छूना, प्यास लगे तो अपने हाथ से लेकर ना पिये उनसे मांग ले और पीने के पानी या फिल्टर को तो बिल्कुल न छुये।'

       शांति ने शांति से सुना। बोली मैडम जी आप निश्चिंत रहिये। मैं अपनी चप्पल बाहर उतारूंगी, आप से पूछे बगैर किसी चीज को हाथ नहीं लगाऊंगी और प्यास लगने पर आपसे पानी भी नहीं मांगूंगी। मैं अपने साथ पानी की बड़ी बोतल और अपना टिफिन  लेकर आती हूँ। आपने शायद देखा नहीं वो थैली मैंने बाहर रखी है।

   कामिनी जी ने कहा ठीक है, कभी पानी खत्म हो तो खुद मत लेना। प्रति उत्तर जो मिला कामिनी जी के लिए कल्पनातीत था।

  शांति ने कहा, मैडम जी मैंने कहा ना, मैं आपके घर का पानी नहीं पिऊंगी। जवाब थोड़ा खटका, कामिनी बोली- क्या मतलब है तुम्हारा?

 शांति का जवाब कामिनी के लिए किसी तमाचे से कम ना था।

  मैेडम जी, मेरे पिताजी ने एक बार गांव के कुंए  से बिना पूछे पानी निकाल कर पी लिया था। तब उन्हें बहुत मार पड़ी थी। दूसरे दिन ही उन्हें परिवार सहित गांव से निकाल दिया गया। उन्होने गांव के बाहर आकर कसम ली और अपने परिवार को भी दी कि कभी उनका छुआ पानी और खाना मत खाना जो हमें अछूत मानते हैं, याद रखना वो हमारे लिये अछूत हैं।

 मैडम जी उस दिन से हमारे परिवार में सब अपने काम पर जाते समय अपना खाना पानी लेकर चलते हैं, जिससे उस घर का पानी न पीना पड़े जो हमें अछूत मानते हैं, वो हमारे लिये अछूत  हैं।
       कामिनी निःशब्द, स्तब्ध खड़ी रही।

                         🙏🙏



No comments:

Post a Comment