अपनी मज़बूती पर
इठलाता बाँध..
भूकम्प, बारिश, या तूफ़ान
अडिग रहा धरा पर
रख पैर अंगद समान..
पर क्षमताओं की भी
होती हैं अपनी सीमाएं..
प्रकृति प्रदत प्रहार
लगातार बारबार ...
कर रहे खोखले
मज़बूती के बंधन
कर सुनार की तरह
धीरे-धीरे महिन वार..
वेग चाहे जैसा भी हो
करता है जब स्पर्श ..
भावना को, क्रोध को,
आंसुओं को या पानी को..
बहा ले जाता है बहुत कुछ
अपनी तीव्रता के साथ...
मज़बूती बह निकलती है
उस वेग के तूफ़ान में...
और शेष रह जाते हैं
कुछ अवशेष ...
स्पष्ट करने को सार्थकता
अपने अस्तित्व की...!!
©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!
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