Monday 27 August 2018



ना शोर ही मचाए, ना ख़ामोश है ज़िन्दगी,
जागती आँखें लिए मदहोश है ज़िन्दगी..

ना खुल के खिलेे, ना उजाट है ज़िन्दगी,
आती-जाती लहरों का चुप्पा घाट है ज़िन्दगी..

ना चाल ही सूझती, ना मात है ज़िन्दगी,
शतरंज की ऐसी एक बिसात है ज़िन्दगी..

ना रईसी की ज़मात, ना फ़ाका है ज़िन्दगी,
दोनों के बीच झूलता एक ख़ाका है ज़िन्दगी..

ना सुकून का जामा, ना क़फ़न है ज़िन्दगी,
किस दौर से गुजर रही कहाँ दफ़न है ज़िन्दगी..

ना कोई हुक्मरां, ना ही हुक़ूमत है ज़िन्दगी,
जाने कहाँ ज़मींदोज़ कहाँ ज़ब्त है ज़िन्दगी..

ना मुहब्बत ही है, ना हिक़ारत है ज़िन्दगी,
जाने किस सोहबत की शरारत है ज़िन्दगी..!!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

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