सुनो..!
मैंने..
मन की सिलाईयों पर..
उम्मीदों के रंग-बिरंगे
फॅंदे डाले हैं ..
मैं बुन रही हूँ
तुम्हारे लिये ..
प्यार का स्वटेर ..
सूरज की चमकती किरणों से
उकेरूँगी उस पर..
भीगा हुआ-सा चाँद ..
और सीलूँगी उसे पलकों में
अहसासों की मिठास डालकर..
तुम उसमें नहीं, वो फबेगा ..
तुम पर...
क्या कहा..! नाप लूँ एक बार..?
नहीं, नाप की कोई दरकार
नहीं है मुझको..!
क्योंकि जिस तरह तुम्हे आज भी
अपनी पसंद पर नाज़ है..
वैसे ही मुझे भी है,
अपनी निगाहों पर विश्वास..
क्योंकि म़ैं हूं "तुम्हारी अर्धांगिनी"..!
©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!
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