Tuesday 22 May 2018



हर कोई है
अभिमन्यु
यहाँ
और
भेदना है
अपने-अपने
हिस्से के
चक्रव्यूह को...

निरंतर
गति पाती
बाधाओं से
बचते हुए
निकलना है
तोड़कर
हर व्यूह रचना..

तलाशने होंगे
नये आयाम
जीवन में स्थिरता
बनाये रखने को
नीरस, उबाऊ
और निराशा
से भरे रास्तों
से बचते हुए..

मौका कहाँ
देती है ज़िन्दगी
गिरने, उठने
संभलने भर का
दिखानी पड़ेगी
फुर्ती सी रफ़्तार
करने को हर
बाधा पार
रख क्षमता अपार..

होगा लड़ना
कभी अपनों से
कभी सपनों से
परिस्थितियों से
परेशानियों से
बाधाओं से
जीवन की इस
उथल-पुथल में
प्रतिपल होंगी
परिस्थितियां
प्रतिकूल
करने को
उन्हें अनुकुल
अपने अनुरूप
देनी होगी
अदम्य साहस की
परिभाषा..

संताप, विलाप
पश्चाताप का भी
वक़्त कहाँ..
और जो रुके
थमे ठहरे
इन सब के लिए
तो ठहर जायेगा
जीवन, घुटन
और सड़न
अगर बह गए
इस बहाव में
तो बह जायेगा
सब कुछ..

अभिमन्यु
की तो
वीरगति थी
तुम्हारी
वो भी नहीं
गिनी जायेगी..
इसलिए
जीवन के
रणक्षेत्र में
जुझारू
ही रहना होगा
पूरी तत्परता के
साथ हर क्षण
हर दम
हर सांस
नयी आस
जगानी होगी..

मृत्यु का वरण
कभी उपाय
नही हो सकता
झंझावतों से
बचने का
अपितु
उत्पन्न ही
करेगा
क्लिष्टताओं को
मरने के बाद भी
दागे जायेंगे
तमाम प्रश्न
इस हश्र
की कौतुलहता
को जानने
की जिज्ञासा में..

क्यों देते हो
अधिकार
उन लोगों को
जो कभी तुम्हारे
संघर्ष के
साथी भी नही थे
वे भी उंगलियां
उठाये नज़र आएंगे
कतार में
बिन ज़ज़्बातों
के इस
बाज़ार में..

जीवन
तो एक
सतत संघर्ष
का नाम है
जीने से
मरने तक
एक निरंतरता
लिए हुए
और हमें
बिना थके
करना है युद्ध
जीवन की
बदलती चाल
और
बदलते काल
से
एक क्षण
से मुक्त
हो
दूसरा क्षण
पाने को..

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

Friday 11 May 2018


चाहती हूँ
बिखेर देना
खुद को …

इस अहसास
और विश्वास
के साथ ....

कि समेट
लोगे तुम
मुझे…

फ़िर..

गढ़ोगे
अपने अनुरूप
अपने लिए...

सुनो,...!

कुछ इस तरह
देना आकार
मुझको …

कि...

मैं पा जाऊं
एक परिपूर्ण
अस्तित्व..

अपनी ही
सम्पूर्णता
के साथ..!!

©....Kavs"हिन्दुुस्तानी"..!!

Sunday 6 May 2018

कभी कभी मन करता है…
नदिया की धारा  के संग,
बहती पवन-सी  बह जाऊं .....

कभी कभी मन करता है ..
सितारों की चुनर ओढ़  ..
रूपों भरी रात हो जाऊं ...

कभी कभी मन करता है…
भोर की पहली किरण संग
सुनहरे दिन की सौगात हो जाऊं ...

कभी कभी मन करता है
अनखुए सपनों के संग
परिधि से निकल आकाश में खो जाऊं ....

पर इतना आसान कहाँ बह जाना …
रूपों भरी रात या सुनहरा दिन हो जाना
यूँ अपनी परिधि  छोड़ आकाश में खो जाना ...

थम जाना और जम जाना ही
शेष रहता अनवरत प्रक्रिया में
जो पिघलता है वक़्त की गर्मी के साथ धीरे-धीरे  ....

©....kavs "हिंदुस्तानी"..!!