Sunday 6 May 2018

कभी कभी मन करता है…
नदिया की धारा  के संग,
बहती पवन-सी  बह जाऊं .....

कभी कभी मन करता है ..
सितारों की चुनर ओढ़  ..
रूपों भरी रात हो जाऊं ...

कभी कभी मन करता है…
भोर की पहली किरण संग
सुनहरे दिन की सौगात हो जाऊं ...

कभी कभी मन करता है
अनखुए सपनों के संग
परिधि से निकल आकाश में खो जाऊं ....

पर इतना आसान कहाँ बह जाना …
रूपों भरी रात या सुनहरा दिन हो जाना
यूँ अपनी परिधि  छोड़ आकाश में खो जाना ...

थम जाना और जम जाना ही
शेष रहता अनवरत प्रक्रिया में
जो पिघलता है वक़्त की गर्मी के साथ धीरे-धीरे  ....

©....kavs "हिंदुस्तानी"..!!

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