जब होता है मन उदास
और रहना चाहता है शांत ..
जाने क्यों उसी वक़्त
शुरू होता है कोलाहल
अंतर्मन में ...
अक्सर मन के कोनों में
बेहताशा से दौड़ते
अनगिनत विचार
इधर से उधर
और झड़ी सी लग जाती है
शब्दों की ...
बार-बार, लगातार
टकराते रहते है
अंतर्मन से
पाने को एक
निश्चित सा आकार…
शब्दों की उठापटक
मन की उहापोह
अकालांत सी तन्हाई
क्षणों की छटपटाहट
भला कैसे दे पाए जन्म
किसी स्थिरता को…
मस्तिष्क की भट्टी में
उफनते विचार और शब्द
भावों की गर्मी पाकर
स्वतः पिघलने लगते हैं
होने को आज़ाद
आँखों के कोरों से बहकर
धीरे धीरे ... !!
©....Kavs "हिन्दुुस्तानी"..!!
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