Sunday 19 August 2018



नियति

मासूमियत से भरा वो चेहरा
झुनझुने की एक झुनझुनाहट पर
दस दस किलोलें भरता
माँ की गोद में..

कि चलो कोई तो है जो जीवन की 
कंटीली राहों से है बेख़बर
मेरे होठों के बीच की रेखा
जो फैल कर मुस्कान बन गयी थी
कुछ सोच कर फिर अपने
दायरों में सिमट गई..

कि कभी तो इसे भी
उन गर्म हवाओं से
दो-चार होना पड़ेगा
जो जीवन की
कंटीली राहों पर चलते हुए
बार-बार उखाड़ेंगी उसके पाँव..

पर फिर भी
थकने की उसे इजाज़त नहीं
क्योंकि चलना उसका नसीब है
किन्कर्तव्यविमूढ़ थी मैं
जो ये भी नहीं कह सकती थी
कि तू चलना मत सीखना
क्योंकि ये तो नियति है ज़िन्दगी की..!!!!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

No comments:

Post a Comment