Friday 20 July 2018

संस्कार उगा नहीं करते,
खेत-खलिहानों में ..
न ही निर्मित किये जाते
धुआं उगलती फैक्ट्रियो में ..

वो तो उत्पन होते हैं,
विरासतों की ज़मीन पर ..
सुघड़ व्यवहार की धूप में,
पकते, फूलते और फलते हैं…

सींचे जाते है अन्तरात्माओं से
अच्छाई -बुराई की कसौटी पर ..
घिसे और परखे जाते हैं
पारस सा निखार पाते हैं …

धोखेबाजी की मरूभूमि से दूर
सुकोमल मन में आकार पाते है….
मिटटी, माँ, गुरु के आशीष में,
उपहार स्वरुप मिल जाते हैं .. !!

सुविचारों की पौध है संभल कर रोपना,
संस्कृति यही अगली पीढ़ी को सौंपना ..
दुर्व्यवहार, बेईमानी की घुटन से इसे बचाना ,
नव निर्मित निश्छल मनों तक है पहुँचाना ..!!

©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

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