Tuesday 12 June 2018


इंसानियत से बड़ा धर्म नहीं, इंसां से बड़ी ना जात..
पञ्च तत्व का शरीर ये, और माटी-सी औकात..!!

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दूसरों की ख़ुशी में खुश होकर देखिए,
यक़ीनन अपने गम भूल जाएंगे..
गम तो सबके खाते में बहुत हैं,
ख़ुशी देकर देखिए रोते हुए बन्दे भी मुस्कुराएंगे..!!
                       
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वक़्त की आँखों से चश्मा उतार रख दिया मैंने..
अपनेपन के आईने में हर कोई धुंधला जाता था..!!
                         
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मेहरबानियां उदासियों की बादस्तूर जारी हैं..
आज इसकी तो कल उस गम की बारी है..!!

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ज़रूरतों की गिनति में ही रहे उम्रभर..
बाकि तो किसी गिनती में हम थे ही नहीं..!!

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देखने भर से ग़र निभते रिश्ते
शायद हम सब बुत होते ..
मोहसिन तेरी इस नगरी में
ना मोहब्बत होती, ना युद्ध होते ..!!©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!

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