वक़्त-वक़्त की बात है,
आज इसका, कल उसके साथ है..
दिन तो कितना उजला है,
फिर काली क्यों इतनी रात है..
जब खुशियाँ नहीं टिकती ज़िंदगी में,
तो गम रहता क्यों साथ है..
गहराती चुप्पियाँ खामोश हैं,
कोई करता क्यों नहीं बात है..
खड़ा अकेला घेर रहीं तनहाईयाँ..
देता क्यों नहीं कोई साथ है..
बाहर मौसम खुला-खुला..
अंदर क्यों बरसात है..
भूमि जब बंजर पड़ी..
दिखती कैसे हरी घास है..
मृतप्रायः इंसान यहाँ..
लेते कैसे ये साँस हैं..
ऊपर-ऊपर मुस्कराते
दिल में लिए आघात हैं..
रूखी-रूखी मरूभूमि ..
कहीं बहते जल-प्रपात हैं..
बनते-बिगड़ते रोज़ रिश्ते यहाँ..
फिर भी ज़िंदा अहसास हैं..
जाने सफ़र में मिलते कितने..
होता नहीं हर कोई खास है..
जो थाम सके तुझको..
बस वही विश्वास है...
मृगतृष्णा में भटक रहा..
बीत रहा जो पास है..
जिजीविषा ढूँढ रही..
आस में अभिलाष है..
वक़्त- वक़्त की बात है..
आज इसका, कल उसके साथ है..!!
©....Kavs"हिन्दुस्तानी"..!!
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